भाजपा को किला बचाने, कांग्रेस को सेंधमारी की आस; इस सीट पर मुस्लिम आबादी तय करेंगी रिजल्ट

टिहरी राज परिवार की परंपरागत सीटों में शामिल टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट पर भाजपा सुकून की स्थिति में अवश्य दिख रही है, लेकिन यहां उसके विधायकों की साख भी दांव पर है। इस सीट के अंतर्गत आने वाले 14 विधानसभा क्षेत्रों में से 11 पर भाजपा काबिज है, जबकि एक निर्दलीय विधायक ने भी इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया। कांग्रेस के पास के पास केवल दो विधानसभा सीटें ही हैं।

लोकसभा चुनाव के लिए 19 अप्रैल को हुए मतदान में यहां पिछली बार की तुलना में 4.54 प्रतिशत मतदान कम हुआ, लेकिन भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है। यद्यपि, कांग्रेस भी अपने दो विधानसभा क्षेत्रों के साथ ही तीन अन्य विस क्षेत्रों में हुए ठीकठाक मतदान से उम्मीद लगाए बैठी है। इन तीन विस क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है। ऐसे में इन्हें लेकर भाजपा में बेचैनी भी है।टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट पर वर्ष 2019 में 58.30 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था, जबकि इस बार मतदान में गिरावट आई और यह 53.76 प्रतिशत रहा। कम मतदान होने को लेकर भाजपा, कांग्रेस के अपने-अपने दावे और तर्क हैं। दोनों ही अपने हिसाब से इसकी व्याख्या कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में विधानसभा क्षेत्रवार आंकड़ों को ही देखें तो भाजपा के 11 व एक निर्दल के प्रतिनिधित्व वाली सीटों पर 41.50 से लेकर 64.70 प्रतिशत तक मतदान हुआ। इनमें से सहसपुर, रायपुर व विकासनगर विधानसभा क्षेत्रों में 51.53 से 64.70 प्रतिशत तक मतदान होने से भाजपा खेमे में बेचैनी भी महसूस की जा रही है।कारण यह कि इनमें मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यहां कांग्रेस स्वयं को सुकून में मानकर चल रही है। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रतिनिधित्व वाले चकराता और प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्रों में मतदान क्रमश: 51.47 व 41.66 प्रतिशत रहा, लेकिन कांग्रेस की चिंता ये है कि इन क्षेत्रों में एक निर्दलीय उम्मीदवार की भी धमक रही। चुनाव के नतीजे क्या रहते हैं, इसे लेकर चार जून को तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन तब तक प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें तो बढ़ी ही रहेंगी।

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